Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ४
कायवध
योग
१
२
इन अंकों का अनुक्रम से परस्पर गुणा करने पर पन्द्रह बंधहेतु के सोलह (१६) भंग होते हैं ।
१०४
इन्द्रिय-अविरति
१
कषाय
४
युगल
२
वेद
१
१. इन पन्द्रह हेतुओं में भय का प्रक्षेप करने पर सोलह बंधहेतु होते हैं । इनके भी सोलह (१६) भंग जानना चाहिये ।
२. अथवा जुगुप्सा के मिलाने पर भी सोलह (१६ ) हेतु होंगे । इनके भी सोलह (१६) भंग होंगे ।
पूर्वोक्त पन्द्रह हेतुओं में भय और जुगुप्सा को युगप मिलाने से सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी सोलह (१६) भंग जानना चाहिये और इस प्रकार सासादनगुणस्थान में अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के कुल मिलाकर (१६+१६+१६+१६ = ६४) चौंसठ भंग होते हैं ।
अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि के उक्त पन्द्रह बंधहेतुओं में मिथ्यात्व रूप हेतु के मिलाने पर सोलह बंधहेतु होते हैं और यहाँ कार्मण, औदारिकमिश्र एवं औदारिक इन तीन योगों में से अन्यतर योग कहकर योग के स्थान पर तीन का अंक रखना चाहिये । जिससे अंकस्थापना का रूप इस प्रकार होगामिथ्यात्व इन्द्रिय-अविरति
कायवध
वेद योग
कषाय युगल २
१
१
१
४
१ ३
इन अंकों का परस्पर गुणा करने पर सोलह बंधहेतुओं के चौबीस (२४) भंग होते हैं ।
१० इन सोलह बंधहेतुओं में भय का प्रक्षेप करने पर सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी चौबीस (२४) भंग होते हैं ।
२० अथवा जुगुप्सा के मिलाने पर सत्रह हेतु के भी चौबीस (२४) भंग जानना चाहिये ।
पूर्वोक्त सोलह हेतुओं में भय-जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर अठारह हेतु होते हैं । इनके भी चौबीस (२४) भंग जानना चाहिये और
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