Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
१४२
पंचसंग्रह : ४ इन तीनों विकल्पों के सर्व भंगों का जोड़ (१८७२०+७२००+५६१६०= ८२०८०) बयासी हजार अस्सी होता है ।
अब अठारह बंधप्रत्यय और उनके भंग बतलाते हैं।
अठारह बंधप्रत्ययों का कोई विकल्प नहीं हैं। अतः यह एक ही प्रकार का है । इसमें गभित प्रत्ययों के नाम इस प्रकार हैं
मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार अठारह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकों में रचना इस प्रकार है
१+१+६+४+१+२+२+१=१८ । इसके भंग इस प्रकार जानना चाहिए५X६४१४४४३४२४१३=६३६० भंग होते हैं ।
उपयुक्त प्रकार से मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में दस से लेकर अठारह तक बंधप्रत्यय और उनके विकल्पों का विवरण है। इनके सर्व भंगों का विवरण इस प्रकार है
१ दस बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-४३२०० २ ग्यारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-२५०५६० ३ बारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-६५५६२० ४ तेरह बंधप्रत्यय सम्बन्धी मंग-१०२८१६० ५ चौदह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-१०५८४०० ६ पन्द्रह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-७२५७६० ७ सोलह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-३१६६८० ८ सत्रह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-८२०८० ६ अठारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग-६३६०
मिथ्यादृष्टिगुणस्थान के इन सब बंधप्रत्ययों के भंगों का कुल जोड़ ४१७३१२० है।
इस प्रकार से मिथ्यात्वगुणस्थान के बंधप्रत्यय-सम्बन्धी सर्व भंग जानना चाहिए। यहाँ और आगे भी बंधप्रत्ययों के भंगों को जानने सम्बन्धी करणसूत्र इस प्रकार जानना चाहिए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org