Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 180
________________ by बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १४५ (ख) इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में प्रारूप इस प्रकार है १+१+४+१+२+१+१=११ । इन दोनों विकल्पों के भंग इस प्रकार है (क) ६×१५X४× ३ × २ × १२ = २५६२० भंग होते हैं । ६ × १५ × ४ × २ ×२ × १ = १४४० भंग होते हैं । (ख) ६×६ × ४X३X२ × २ ×१२= २०७३६ भंग होते हैं । ६×६× ४× २ × २x२×१ = ११५२ भंग होते हैं ? इन ग्यारह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंगों का कुल जड़ ( २५६२० + १४४० +२०७३६+११५२ = ४६२४८) उनचास हजार दो सौ अड़तालीस होता है । इन दोनों विकल्पों के भंग ऊपर बताई गई विवक्षाओं की अपेक्षा हैं । इसी प्रकार आगे के बंधप्रत्ययों के विकल्पों के भंगों के लिये समझना चाहिये । अब बारह बंधप्रत्यनों के किलों और उनके भंगों को बतलाते हैं । बारह प्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं --- (क) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+३+४+१+२+१=१२ । (ख) इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+२+४+१+२+१+१=१२ । (ग) इन्द्रिय एक काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल , एक, भय युगल और योग एक. ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकरचनानुसार इनका प्रारूप इस प्रकार है १+१+४+१+२+२+१=१२ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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