Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट
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(ख) इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में प्रारूप इस प्रकार है
१+१+४+१+२+१+१=११ ।
इन दोनों विकल्पों के भंग इस प्रकार है
(क) ६×१५X४× ३ × २ × १२ = २५६२० भंग होते हैं ।
६ × १५ × ४ × २ ×२ × १ = १४४० भंग होते हैं ।
(ख) ६×६ × ४X३X२ × २ ×१२= २०७३६ भंग होते हैं । ६×६× ४× २ × २x२×१ = ११५२ भंग होते हैं ?
इन ग्यारह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंगों का कुल जड़ ( २५६२० + १४४० +२०७३६+११५२ = ४६२४८) उनचास हजार दो सौ अड़तालीस होता है । इन दोनों विकल्पों के भंग ऊपर बताई गई विवक्षाओं की अपेक्षा हैं । इसी प्रकार आगे के बंधप्रत्ययों के विकल्पों के भंगों के लिये समझना चाहिये ।
अब बारह बंधप्रत्यनों के किलों और उनके भंगों को बतलाते हैं ।
बारह प्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं
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(क) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+३+४+१+२+१=१२ ।
(ख) इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+२+४+१+२+१+१=१२ ।
(ग) इन्द्रिय एक काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल , एक, भय युगल और योग एक. ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकरचनानुसार
इनका प्रारूप इस प्रकार है
१+१+४+१+२+२+१=१२ ।
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