Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 167
________________ पंचसंग्रह : ४ उक्त प्रारूप में जघन्य और उत्कृष्ट बंधप्रत्ययों की संख्या गुणस्थानानुसार इस प्रकार समझना चाहिये कि मिथ्यात्वगुणस्थान में जघन्य दस और उत्कृष्ट अठारह बंधप्रत्यय होते हैं और इन दोनों की अन्तरालवर्ती संख्या ११ से १७ मध्यम बंधप्रत्ययों रूप है । इसी प्रकार से दूसरे आदि आगे के गुणस्थानों के मध्यम बंधप्रत्ययों के लिए जानना चाहिये । एकसंयोगी, द्विसंयोगी आदि संयोगी भंगों गुणस्थानों में बंधप्रत्ययों के का करणसूत्र इस प्रकार है जिस विवक्षित राशि के भंग निकालना हों, उस विवक्षित राशि प्रमाण को लेकर एक-एक कम करते एक के अंक तक अंकों को स्थापित करना चाहिए और उसके नीचे दूसरी पंक्ति में एक के अंक से लेकर विवक्षित राशि के प्रमाण तक अंक लिखना चाहिये । पहली पंक्ति के अंकों को अंश या भाज्य और दूसरी पंक्ति के अंकों को हार ( हर ) या भागाहार कहते हैं । ये भंग भिन्नगणित के अनुसार निकाले जाते हैं, अतः क्रम से स्थापित पहले भाज्यों के साथ अगले भाज्यों का और पहले भागाहारों के साथ अगले भागाहारों का गुणा करना चाहिये । पुनः भाज्यों के गुणा करने से जो राशि प्राप्त हो, उसमें भागाहारों के गुणा करने से प्राप्त राशि का भाग देना चाहिये और इस प्रकार जो प्रमाण आये, तत्प्रमाण ही विवक्षित स्थान के भंग जानना चाहिये । १२२ इस नियम के अनुसार कायवध सम्बन्धी संयोगी भंगों को स्पष्ट करते हैंआदि के चार गुणस्थानों में षट्कायिक जीवों का वध सम्भव है । अतएव छह, पांच, चार, तीन, दो और एक इन भाज्य अंकों को क्रम से लिखकर पुनः उनके नीचे एक, दो, तीन, चार, पांच और छह इन भागाहार अंकों को लिखना चाहिए। जिससे इनका प्रारूप इस प्रकार होगा भाज्यराशि ६ हारराशि १ ५ २ ४ ३ ४ ३ ५ ६ यहाँ पर पहली भाज्यराशि छह में पहली हारराशि एक का भाग देने से छह आते हैं । जिसका अर्थ यह हुआ कि एकसंयोगी भंगों का प्रमाण छह होता है । पहली भाज्यराशि छह का अगली भाज्यराशि पांच से गुणा करने पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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