Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 171
________________ पंचसंग्रह : ४ उक्त पांचों विकल्पों के भंगों के प्रमाण को जोड़ने पर (१४४०००+ १४०४००+२१६०००+११२३२०+४३२००=६५५६२०) बारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी सर्व भंगों का प्रमाण छह लाख पचपन हजार नौ सौ बीस होता है। अब तेरह बंधप्रत्यय और उनके भंगों को बतलाते हैं। तेरह बंधप्रत्यय बनने के छह विकल्प हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है (क) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार. क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । कन्यास पूर्वक इनका प्रारूप इस प्रकार है १+१+४+३+१+२+१=१३ । (ख) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय चार वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार कुल मिलाकर तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकों में उनका प्रारूप इस प्रकार है १+१+३+४+१+२+१=१३ । (ग) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादिक कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक, योग एक, इस प्रकार तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । जो अंकों में इस प्रकार से जानना चाहिये १+१+३+३+१+२+१+१= १३ । (घ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय च र, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार भी तेरह बंधप्रत्यय होते हैं। जिनकी अंकरचना इस प्रकार है १+१+२+४-१+२+१+१= १३ । (ङ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय युगल और योग एक, इस प्रकार तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकों में प्रारूप इस प्रकार है १+१+२+३+१+२+२+१=१३ । (च) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212