Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ४
हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और एक योग, इस प्रकार चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकों में जिनका प्रारूप इस प्रकार है
१+१+३+४+१+२+१+१= १४ । (ङ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वे द एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये कुल मिलाकर चौदह बंधप्रत्यय होते हैं। अंकन्यास इस प्रकार है
१+१+३+३+१+२+२+१= १४ । (च) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकरचना इस प्रकार है
१+१+२+४+१+२+२+१ = १४ । उपर्युक्त छह विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिये(क) ५४६x६x४४३४२४१०=४३२०० भंग होते हैं। (ख) ५४६४१५४४४३४२४१३= १४०४०० भंग होते हैं। (ग) ५४६४१५४४४३x२x२x१०-२१६००० भंग होते हैं। (घ) ५४६x२०४४४३x२x२x१३=३७४४०० भंग होते हैं। (ङ) ५४६x२०x४४३४२४१०-१४४००० भंग होते हैं। (च) ५४ ६४ १५४४४३४२४१३१४०४०० भंग होते हैं।
इन चौदह बंधप्रत्यय के छह विकल्पों के कुल मिलाकर (४३२००+ १४०४०० + २१६००० + ३७४४०० + १४४००० + १४०४०० = १०५८४००) दस लाख अट्ठावन हजार चार सौ भंग होते है ।
अब पन्द्रह बंधप्रत्ययों के विकल और उनके भंगों को बतलाते हैं । पन्द्रह बंधप्रत्यय के छह विकल्प हैं । जो इस प्रकार हैं
(क) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । जिनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है१+१+६+३+१+२+१=१५ । For Private & Personal Use Only
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