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________________ १३८ पंचसंग्रह : ४ हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और एक योग, इस प्रकार चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकों में जिनका प्रारूप इस प्रकार है १+१+३+४+१+२+१+१= १४ । (ङ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वे द एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये कुल मिलाकर चौदह बंधप्रत्यय होते हैं। अंकन्यास इस प्रकार है १+१+३+३+१+२+२+१= १४ । (च) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार चौदह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकरचना इस प्रकार है १+१+२+४+१+२+२+१ = १४ । उपर्युक्त छह विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिये(क) ५४६x६x४४३४२४१०=४३२०० भंग होते हैं। (ख) ५४६४१५४४४३४२४१३= १४०४०० भंग होते हैं। (ग) ५४६४१५४४४३x२x२x१०-२१६००० भंग होते हैं। (घ) ५४६x२०४४४३x२x२x१३=३७४४०० भंग होते हैं। (ङ) ५४६x२०x४४३४२४१०-१४४००० भंग होते हैं। (च) ५४ ६४ १५४४४३४२४१३१४०४०० भंग होते हैं। इन चौदह बंधप्रत्यय के छह विकल्पों के कुल मिलाकर (४३२००+ १४०४०० + २१६००० + ३७४४०० + १४४००० + १४०४०० = १०५८४००) दस लाख अट्ठावन हजार चार सौ भंग होते है । अब पन्द्रह बंधप्रत्ययों के विकल और उनके भंगों को बतलाते हैं । पन्द्रह बंधप्रत्यय के छह विकल्प हैं । जो इस प्रकार हैं (क) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । जिनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है१+१+६+३+१+२+१=१५ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org X X XXX urror X X Jain Education International
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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