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________________ • बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १३८ (ख) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय पांच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, कुल मिलाकर ये पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकसंदृष्टि इस प्रकार जानना चाहिए १+१+५+४+१+२+१=१५ । (ग) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय पांच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युग ल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+५+३+१+२+१+१=१५। (घ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार ये पन्द्रह बंधहेतु होते हैं । अंकों में जिनका रूप इस प्रकार है १+१+४+४+१+२+१+१=१५ । (ङ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, मययुगल और योग एक, कुल मिलाकर ये पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+४+३+१+२+२+१=१५ । (च) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय तीन, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये पन्द्रह बंधप्रत्यय हैं । इनकी अंकों में रचना इस प्रकार है १+१+३+४+१+२+२+१=१५ । उपर्युक्त पन्द्रह बंधप्रत्ययों के कुल विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ५×६ × १x४×३×२×१०= ७२०० भंग होते हैं । (ख) ५×६×६×४X३X२ ×१३ = ५६१६० भंग होते हैं । (ग) ५ × ६×६× ४X३X२x२×१० = ८६४०० भंग होते हैं । (घ) ५×६ X१५X४X३X२×२×१३ = २८०८०० भंग होते हैं । (ङ) ५× ६ × १५X४×३×२×१० १०८००० भंग होते हैं । (च) ५×६ × २० X ४X३X२ × १३ = १८७२०० भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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