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________________ पंचसंग्रह : ४ इन पन्द्रह बंधप्रत्यय के छह विकल्पों के कुल मिलाकर ( ७2004 ५६१६०+८६४००+२८०८००+१०८००० + १८७२००=७२५७६०) सात लाख पच्चीस हजार सात सौ साठ भंग होते हैं । अब सोलह बंधप्रत्ययों के विकल्प और उनके भंगों को बतलाते हैं । सोलह बंधप्रत्ययों के पांच विकल्प हैं । जो इस प्रकार बनते हैं १४० (क) मिध्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक हास्यादि युगल एक और योग एक, इस प्रकार सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है T १+१+६+४+१+२+१=१६। (ख) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल में से एक और योग एक, इस प्रकार सोलह बंधहेतु होते हैं । इनकी अंकों में संदृष्टि इस प्रकार है १+१+६+३+१+२+१+१=१६। (ग) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय पांच, क्रोधादि कपाय चार, वेद एक, हास्यदि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकों में इनका रूप इस प्रकार है १+१+५+४+१+२+१+१=१६। (घ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है— १+१+५+३+१+२+२+१=१६। (ङ) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय चार, कोवादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार सोलह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+४+४+१+२+२+१=१६। इन सोलह बंधप्रत्ययों के पांचों विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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