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________________ बंध हेतु - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट (क) ५×६ × १ (ख) ५×६ × १ × ४ × ३ २×२×१०=१४४०० भंग होते हैं | (ग) ५×६×६x४×३ २×२ × १३= ११२३२० भंग होते हैं । (घ) ५ × ६ × ६ × ४X३X२×१०= ४३२०० भंग होते हैं । (ङ) ५×६ × १५X४X३X२ ×१३= १४०४०० भंग होते है । इन पांचों विकल्पों के सर्व भंगों का जोड़ (६३६० + १४४००+ ११२३२०÷४३२०० + १४०४००= ३१६६८० ) तीन लाख उन्नीस हजार छह सौ अस्सी होता है | अब आगे सत्रह बंधप्रत्ययों के विकल्प और उनके भंगों को बतलाते हैं । सत्रह बंधप्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार जानना चाहिये ४×३×२ × १३ = ९३६० भंग होते हैं । १४१ 7 (क) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय छह, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस प्रकार सत्रह बंधप्रत्यय होते हैं । अंकसंदृष्टि के अनुसार उनका रूप इस प्रकार है १+१+६+४+१+२+१+१= १७। (ख) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार ये सत्रह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है— १+१+६+३+१+२+२+१=१७। Jain Education International (ग) मिथ्यात्व एक, इन्द्रिय एक काय पांच क्रोधादि कषाय चार, वेद एक हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, इस प्रकार सत्रह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसं दृष्टि इस प्रकार है १+१+५+४+१+२+२+१=१७ । इन सत्रह बंधप्रत्ययों के तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिए (क) ५× ६ × १×××३ × २ × २ × १३ = १८७२० भंग होते हैं । (ख) ५×६ × १४×३×२×१०= ७२०० भंग होते हैं । (ग) ५× ६ × ६× ४X३X२ ×१३=५६१६० भंग होते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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