Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 162
________________ बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १२७ चत्तारि अविरए चय थीउदय विउविमीसकम्मइया। इत्थिनपुसगउदए ओरालियमीसगो जन्नो ॥१२।। दोरूवाणि पमत्ते चयाहि एगं तु अप्पमत्तंमि । जं इथिवेयउदए आहारगमीसगा नत्थि ॥१३।। सव्वगुणठाणगेसु विसेसहेऊण एत्तिया संखा। छायाललक्ख बासीइ सहस्स सय सत्त सयरी य ॥१४॥ सोलसट्ठारस हेऊ जहन्न उक्कोसया असन्नीणं । चोदसदारसऽपज्जस्स सन्निणो सन्निगुणगहिओ ॥१५॥ मिच्छत्तं एग चिय छक्कायवहो ति जोग सन्निम्मि । इंदियसंखा सुगमा असन्निविगलेसु दो जोगा ॥१६॥ एवं च अपज्जाणं बायरसुहुमाण पज्जयाण पुणो। तिण्णेक्ककायजोगा सण्णिअपज्जे गुणा तिन्नि ।।१७।। उरलेण तिन्नि छण्हं, सरीरपज्जत्तयाण मिच्छाणं । सविउव्वेण सन्निस्स सम्ममिच्छस्स वा पंच ॥१८॥ सोलस मिच्छनिमित्ता बज्झहि पणतीस अविरईए य। सेसा उ कसाएहि जोगेहि य सायवेयणीयं ॥१९॥ तित्थयराहाराणं बंधे सम्मत्तसंजमा हेऊ । पयडीपएसबंधा जोगेहि कसायओ इयरे ॥२०॥ खुप्पिवासुण्हसीयाणि सेज्जा रोगो वहो मलो। तणफासो चरीया य दंसेक्कारस जोगिसु ॥२१॥ वेयणीयभवा एए पन्नानाणा उ आइमे। अट्ठमंमि अलाभोत्थो छउमत्थेसु चोद्दस ॥२२॥ निमज्जा जायणाकोसो अरई इत्थिनग्गया । सक्कारो दंसणं मोहा बावीसा चेव रागिसु ॥२३॥ 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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