Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट : १
बंध हेतु - प्ररूपणा अधिकार की मूल गाथाएँ
च
बंधस्स मिच्छ अविरइ कसाय जोगा य हेयवो भणिया । ते पंच दुवालस पन्नवीस पनरस भेइल्ला ॥१॥ अभिग्ग हियमणाभिग्गहं अभिनिवेसियं चेब | संसइयमणाभोगं होइ ||२|| छक्कायवहो मणइंदियाण अजमो इइ बारसहा सुगमो कसाय जोगा य पुव्वुत्ता ॥३॥ चउपच्चइओ मिच्छे तिपच्चओ मीससासणाविरए । उवसंता जोगपच्चइओ ||४||
पंचहा असजमो भणिओ ।
पमत्ता
दुगपच्चओ पणपन्न
छक्कचउसहिया ।
पन्न तियछहियचत्त गुणचत्त दुजुया य वीस सोलह दस नव नव
दस दस नव नव अड पंच जइतिगे
दु दुग सेसयाणेगो ।
अड सत्त सत्त सत्तग छ दो दो दो इगि जुया वा ॥ ६ ॥
मिच्छत्त
एक्कायादिघाय
अन्नयरअक्खजुयलुदओ । जोगस्सणभयदुगछा वा ॥७॥ भंगया उ कायाणं ।
सया ठवेज्जा कसायाणं ||८||
मिच्छत्तं
य
वेस्स कसायाण इच्चेसिमेग गहणे तस्संखा
चउरो
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जुयलस्स जुयं जा बायरो ता घाओ विगप्प इइ जुगवबंधहेऊणं । अणबंधि भयदुगंछाण चारणा पुण अणउदयरहिय मिच्छे जोगा दस कुणइ जन्न अणणुदओ पुण तदुवलगसम्मदिट्टिस्स सासायणम्मि रूवं चय
जम्हा नपुंसउदय
सत्त हेऊ य ॥५॥
देयहयाण उव्वियमीसगो
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विमज्झेसु || ||
सो कालं । मिच्छुदए ||१०|| नियगजोगाण | नत्थि ॥११॥
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