Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १८
१०३ मिथ्यात्व कायवध इन्द्रिय-अविरति युगल वेद कषाय योग
इन अंकों का क्रमानुसार गुणा करने पर सोलह बंधहेतुओं के बत्तीस (३२) भंग होते हैं।
१. इन सोलह में भय को मिलाने पर सत्रह हेतु होते हैं । इनके भी बत्तीस (३२) भंग होते हैं।
२. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर सत्रह हेतुओं के भी बत्तीस (३२) भंग जानना चाहिये।
पूर्वोक्त सोलह हेतुओं में युगपत् भय-जुगुप्सा के मिलाने पर अठारह बंधहेतु होते हैं । इनके भी बत्तीस (३२) भंग जानना चाहिये और कुल मिलाकर पर्याप्त द्वीन्द्रिय के बंधहेतुओं के (३२+३२+३२+३२= १२८) एक सौ अट्ठाईस भंग होते हैं तथा अपर्याप्त और पर्याप्त द्वीन्द्रिय
के सब मिलाकर (३२०+१२८-४४८) चार सौ अड़तालीस भंग । जानना चाहिये। ___ इस प्रकार से द्वीन्द्रिय के बंधहेतुओं के भंगों का कथन करने के पश्चात् अब एकेन्द्रिय के बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं। अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के बंधहेतुओं के भंग __ बादर और सूक्ष्म के भेद से एकेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं और इनके भी अपर्याप्त एवं पर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद होने से एकेन्द्रिय जीवों के कुल चार भेद हो जाते हैं। इनमें से पहले बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त के बंधहेतु और उनके भंगों का निरूपण करते हैं। ___ अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय के सासादनगुणस्थान में जघन्यतः पूर्व की तरह पन्द्रह बंधहेतु होते हैं । यहाँ मात्र एक स्पर्शनेन्द्रिय की अविरति ही होती है । अतः अंकस्थापना में इन्द्रिय-अविरति के स्थान में " एक, छह कायवध के स्थान में एक, कषाय के स्थान में चार, युगल के स्थान में दो, वेद के स्थान में एक और योग के स्थान में दो रखना चाहिये। जिससे अंकस्थापना का रूप इस प्रकार होगा
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