Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ४
इस प्रकार समन्वय करना चाहिये कि प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में भी वेद के साथ उन उन गुणस्थानों में प्राप्त योगों का गुणा करके गुणनफल में से प्रमत्तसंयतगुणस्थान में दो रूप और अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में एक रूप कम करना चाहिये ।
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उक्त दोनों गुणस्थानों में क्रमशः दो रूप और एक रूप कम करने का कारण यह है कि स्त्रियों में चौदह पूर्व के अध्ययन का अभाव है और चौदह पूर्व के ज्ञान बिना किसी को भी आहारकलब्धि होती नहीं है | अतः स्त्रीवेद का उदय रहने पर आहारक काययोग और आहारकमिश्र योग ये दो योग नहीं होते हैं ।
प्रश्न- स्त्रियों में चौदह पूर्व के अध्ययन का अभाव मानने का क्या कारण है ?
उत्तर - शास्त्र में स्त्रियों के दृष्टिवाद के अध्ययन का निषेध किया है। जैसा कि कहा है
तुच्छा गारवबहुला, चलिदिया दुव्वला य धीईए । इय अइसेसज्झयणा, भुयावाओ उ नो थीणं ॥
अर्थात् स्त्रियां स्वभाव से तुच्छ हैं, अभिमानबहुल हैं, चपल हैं, धैर्य का उनमें अभाव है अथवा मन्दबुद्धि वाली हैं, जिससे इसको ग्रहण व धारण नहीं कर सकती हैं । इसीलिये अतिशयवाले अध्ययनों से युक्त दृष्टिवाद के अध्ययन का स्त्रियों के निषेध किया गया है । अतः उक्त स्थितिविशेष के कारण प्रमत्तसंयतगुणस्थान में वेद के साथ अपने योग्य योगों का गुणा करके स्त्रीवेद में आहारकयोग और आहारकमिश्रयोग यह दो भंग और अप्रमत्तसंयत के स्त्रीवेद में आहारक काययोग यह एक भंग कम करना चाहिये । 1
१ वैक्रिय और आहारक लब्धि वाले प्रमत्तसंयत मुनि लब्धिप्रयोग करने वाले होने से उनको वैक्रियमिश्र और आहारकमिश्र ये दो योग होते हैं । परन्तु वे लब्धि - प्रमत्तसंयत उन उन शरीरों की विकुर्वणा करके उन-उन
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