Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ४ इस प्रकार छह बंधहेतु के दो प्रकार हैं। उनके कुल भंगों का योग (२५६-+ २५६-५१२) पांच सौ बारह है।
अब सात बंधहेतुओं का कथन करते हैंपूर्वोक्त पांच बधहेतुओं में भय और जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से सात हेतु होते हैं । इनके भी (२५६) दो सौ छप्पन भंग होते हैं।
इस प्रकार अप्रमत्तसंयतगुणस्थान में बंधहेतुओं के कुल मिलाकर (२५६+२५६+२५६+२५६=१,०२४) एक हजार चौबीस भंग होते हैं। जिनका दर्शक प्रारूप इस प्रकार है
बंधहेतु
प्रत्येक विकल्प
हेतुओं के विकल्प
के भंग कुल भंग संख्या
२५६
२५६
५१२
५ । १ वेद, १ योग, १ युगल, १ कषाय । २५६ पूर्वोक्त पांच, भय
२५६ ६ " " जुगुप्सा ७ । पूर्वोक्त पांच, भय, जुगुप्सा
२५६ । २५६
कुल योग १०२४ पूर्वोक्त प्रकार से अप्रमत्तसंयतगुणस्थान के बंधहेतुओं का विचार करने के पश्चात् अब क्रमप्राप्त आठवें अपूर्वकरणगुणस्थान के बंधहेतु
और उनके भंगों को बतलाते हैं । अपूर्वकरणगुणस्थान के बंधहेतु .. अपूर्वकरणगुणस्थान में वैक्रिय और आहारक यह दो योग भी नहीं होने से अप्रमत्तसंयतगुणस्थान में बताये गये ग्यारह योगों में से इन दो योगों को कम करने पर नौ योग होते हैं। यहाँ भी पांच, छह और सात बंधहेतु होते हैं। पांच बंधहेतु इस प्रकार हैं-वेदत्रिक में से कोई एक वेद, नौ योग में से कोई एक योग, युगलद्विक में कोई एक युगल
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