Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : ४ काययोग में से कोई एक योग । इस प्रकार कम से कम पन्द्रह बंधहेतु होते हैं। जिनकी अंकस्थापना इस प्रकार जानना चाहियेकायवध इन्द्रिय-अविरति कषाय युगल वेद योग
४ २ ३ २' इन अंकों का अनुक्रम से गुणा करने पर पन्द्रह बंधहेतुओं के दो सौ चालीस (२४०) भंग होते हैं।
१. उक्त पन्द्रह बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर सोलह हेतु होते हैं । इनके भी पूर्ववत् दो सौ चालीस (२४०) भंग हैं।
२. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी सोलह बंधहेतुओं के दो सौ चालीस (२४०) भंग होते हैं।
उक्त पन्द्रह हेतुओं में भय, जुगुप्सा को युगपत् मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होते हैं । इनके भी दो सौ चालीस (२४०) भंग जानना चाहिये तथा सब मिलाकर सासादनगुणस्थान में वर्तमान असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त के (२४०+२४०+२४०+२४० =६६०) नौ सौ साठ भंग होते हैं।
मिथ्यादृष्टि असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त के मिथ्यात्व का उदय होने से जघन्यपद में सोलह बंधहेतु होते हैं। मिथ्यात्वगुणस्थान में अपर्याप्त अवस्था में योग तीन होते हैं। अतः योग के स्थान पर तीन का अंक रखकर पूर्ववत् अनुक्रम से अंकों का गुणा करने पर सोलह बंधहेतुओं के तीन सौ साठ (३६०) भंग होते हैं।
१. उक्त सोलह बंधहेतुओं में भय को मिलाने पर सत्रह बंधहेतु होते हैं । इनके भी तीन सौ साठ (३६०) भंग होते हैं।
२. अथवा जुगुप्सा को मिलाने पर भी सत्रह बंधहेतु होते हैं । इनके तीन सौ साठ (३६०) भंग जानना चाहिये।
उक्त सोलह बंधहेतुओं में भय, जुगुप्सा को युगपत् मिलाने से अठारह बंधहेतु होते हैं। इनके भी तीन सौ साठ (३६०) भंग जानना चाहिये।
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