Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु
५
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हेतुओं के विकल्प
१ वेद, १ योग, १ युगल, १ कषाय
पूर्वोक्त पांच, भय
जुगुप्सा
पूर्वोक्त पांच, भय, जुगुप्सा
13
11
विकल्पवार
भंग
२१६
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२१६
२१६
२१६
कुल योग
पंचसंग्रह : ४
कुल भंग संख्या
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२१६
अब नौवें अनिवृत्तिबादरसंप रायगुणस्थान के बधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं ।
४३२
२१६
८६४
अनिवृत्तिबादर संपरायगुणस्थान के बंधहेतु
अनिवृत्तिबादर संप रायगुणस्थान में जघन्यपदवर्ती दो बंधहेतु होते हैं और वे इस प्रकार हैं— संज्वलनकषायचतुष्क में से कोई एक क्रोधादि कषाय और नौ योगों में से कोई एक योग । अतः चार कषाय से नौ योगों का गुणा करने पर दो बंधहेतु के कुल ( ४x६ = ३६) छत्तीस भंग हैं तथा उत्कृष्टपद में तीन हेतु होते हैं । उनमें से दो तो पूर्वोक्त और तीसरा वेदत्रिक में से कोई एक वेद । इस गुणस्थान में जब तक पुरुषवेद और संज्वलनकषायचतुष्क इस तरह पांच प्रकृतियों का बंध होता है, वहाँ तक वेद का भी उदय है । अतः वेदत्रिक में से कोई एक वेद को मिलाने पर तीन बंधहेतु होते हैं । इन तीन हेतुओं का पूर्वोक्त छत्तीस के साथ गुणा करने पर (३६ x ३ = १०८) एक सौ आठ भंग होते हैं तथा कुल मिलाकर (३६ + १०८ = १४४) एक सौ चवालीस भंग हैं ।
अब दसवें सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान से लेकर तेरहवें सयोगिकेवली गुणस्थान पर्यन्त चार गुणस्थानों के बंधहेतु एवं उनके भंग बतलाते हैं ।
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