Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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६४
पंचसंग्रह : ४
पूर्वोक्त प्रकार से अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान के बंधहेतु और उनके भंगों को जानना चाहिए। सरलता से बोध करने के लिए जिनका प्रारूप इस प्रकार है
बंधहेतु
ह
१०
१०
१०
0 0 0 0 no no no no
११
११
१२
१२
१२
१२
or or or or m m m m
१३
१३
१३
१३
हेतुओं के विकल्प
१ वेद, १ योग, १ युगल, १ इन्द्रियअसंयम, ३ कषाय, १ कायवध
पूर्वोक्त नौ, कार्यद्विकवध
"
11
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पूर्वोक्त नौ, कायत्रिकवध
11
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37
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11
ور
11
11
पूर्वोक्त नौ, कायचतुष्कवध
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11
13
17
11
11
"
भय
जुगुप्सा
पूर्वोक्त नौ, काय पंचकवध,
"
"
कायद्विकवध, भय जुगुप्सा भय, जुगुप्सा
27
"
कायत्रिकवध, भय
"
जुगुप्सा कार्याद्विकवध, भय,
प्रत्येक विकल्प के भंग
कायचतुष्कवध, भय जुगुप्सा कायत्रिकवध, भय,
"
८४००
२१०००
८४००
८४००
२८०००
२१०००
२१०००
८४००
२१०००
२८०००
२८०००
जुगुप्सा २१०००
८४००
२१०००
२१०००
जुगुप्सा २८०००
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कुल भंगसंख्या
८४००
३७८००
७८४००
£5000
७८४००
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