Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२
बंध हेतु
हेतुओं के विकल्प
प्रत्येक विकल्प के भंग
कुल भंग संख्या
पूर्वोक्त नौ, कायषट्कवध
१४०० , कायपंचकवध, भय ८४०० " " , जुगुप्सा ८४०० " कायचतुष्कवध, भय,
जुगुप्सा | २१००० । ३६२०० | पूर्वोक्त नौ, कायषट्कवध, भय
१४०० " जुगुप्सा
१४०० " " कायपंचकवध, भय,
जुगुप्सा | ८४०० ११२०० १६ । पूर्वोक्त नौ, कायषट्कवध, भय
जुगुप्सा | १४०० । १४००
कुल भंगों का योग ३५२८०० अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान के बंधहेतुओं के कुल भंगों का जोड़ (३,५२,८००) तीन लाख बावन हजार आठ सौ है ।
अनेक जीवों की अपेक्षा बहुलता से इन नौ आदि बंधहेतुओं के भंगों का निर्देश किया है। क्योंकि चतुर्थ गुणस्थान को लेकर स्त्रीवेदी रूप में मल्लिकुमारी, राजीमती, ब्राह्मी, सुन्दरी आदि के उत्पन्न होने के उल्लेख मिलते हैं। इस अपेक्षा से चतुर्थ गुणस्थान में स्त्रीवेदी के विग्रहगति में कार्मण और उत्पत्तिस्थान में औदारिकमिश्र यह दो योग भी घट सकते हैं। अतएव इस दृष्टि से स्त्रीवेदी के मात्र वैक्रियमिश्र और नपुसकवेदी के पूर्व में कहे गये अनुसार औदारिकमिश्र इस तरह दो योग होते ही नहीं हैं, जिससे तीन वेद को तेरह योग से गुणा कर चार के बदले दो भंग कम करने पर शेष सैंतीस (३७)
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