Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२
६६ होते है। पांच काय के त्रिकसंयोग में दस भंग होते हैं। अतः कायहिंसा के स्थान पर दस का अंक रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१३,२००) तेरह हजार दौ सौ भंग होते हैं ।
२. अथवा कायद्विकवध और भय को मिलाने से भी दस हेतु होते हैं। यहाँ भी कायहिंसा के स्थान पर पांच काय के द्विकसंयोगी दस भंग होने से दस का अंक रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१३,२००) तेरह हजार दो सौ भंग होते हैं।
३. अथवा जुगुप्सा और कायद्विक के वध को मिलाने से बनने वाले दस बंधहेतुओं के भी ऊपर बताये गये प्रकार से (१३,२००) तेरह हजार दौ सौ भंग होते हैं।
४. अथवा भय और जुगुप्सा के मिलाने से भी दस बंधहेतु होते हैं। उनके पूर्ववत् (६६००) छियासठ सौ भंग होते हैं।
इस तरह दस बंधहेतु के चार प्रकार हैं। उनके कुल भंग ४१३,२०० + १३,२००+१३,२००+६,६०० = ४६२००) छियालीस हजार दौ सौ होते हैं।
दस बंधहेतु के प्रकार और उनके भंगों का विचार करने के पश्चात् अब ग्यारह बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं
१. पूर्वोक्त आठ बंधहेतुओं में चार काय के वध को मिलाने से ग्यारह हंत होते हैं । पांच काय के चतुष्कसंयोगी पांच भंग होने से कायहिंसा के स्थान पर पांच का अंक रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (६,६००) छियासठ सौ भंग होते हैं।
२. अथवा कायत्रिकवध और भय को मिलाने से भी ग्यारह हेतु होते हैं। यहाँ काहिंसा के स्थान पर दस के अंक को रखकर अंकों का गुणा करने पर (१३,२००) तेरह हजार दो सौ भंग होते हैं।
३. अथवा जुगुप्सा और कायत्रिकवध मिलाने से भी ग्यारह हेतु होते हैं। उनके भी ऊपर बताये गये अनुसार (१३,२००) तेरह हजार दो सौ भंग जानना चाहिये । ... ४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायद्विकवध को मिलाने पर भी
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