Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
हेतु - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२
६३
पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (२१,०००) इक्कीस हजार भंग होते हैं ।
इस प्रकार चौदह बंधहेतु चार प्रकार से होते हैं । इनके कुल भंगों का योग (१,४०० + ८,४००+८,४००+२१,००० = ३६,२०० ) उनतालीस हजार दो सौ है ।
अब पन्द्रह बंधहेतु और उनके भंगों का विचार करते हैं
१. पूर्वोक्त नौ हेतुओं में भय और छहकायवध को ग्रहण करने पर पन्द्रह हेतु होते हैं । यहाँ कायवधस्थान पर एक अंक को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणाकार करने पर (१४००) चौदह सौ भंग होते हैं । २. अथवा जुगुप्सा और छहकायवध को ग्रहण करने से भी पन्द्रह हेतु होते हैं । इनके भी ऊपर बताये गये अनुसार (१,४००) चौदह सौ भंग होते हैं ।
३. अथवा भय, जुगुप्सा और कायपंचकवध को मिलाने पर भी पन्द्रह हेतु होते हैं । यहाँ कायवधस्थान में छह का अंक रखकर पूर्वोक्त क्रमानुसार अंकों का परस्पर गुणा करने पर (८,४०० ) चौरासी सौ भंग होते हैं ।
इस प्रकार पन्द्रह हेतु तीन प्रकार से होते हैं । इनके कुल भंगों का (१,४००+१,४००+८,४००=११,२०० ) ग्यारह हजार दो
जोड़
सौ है |
अब सोलह बंधहेतुओं का कथन करते हैं—
पूर्वोक्त नौ हेतुओं में भय, जुगुप्सा और छहकाय को मिलाने पर सोलह हेतु होते हैं । यहाँ छह काय का षट्संयोगी भंग एक होने से कायवधस्थान पर एक रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१,४००) चौदह सौ भंग होते हैं ।
इस प्रकार अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान में नौ से लेकर सोलह बंधहेतु तक के कुल भंग तीन लाख बावन हजार आठ सौ (३,५२,८००) होते हैं ।
Ja Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org