Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
३. इसी प्रकार जुगुप्सा और कायद्विकबध लेने पर भी (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भंग होते हैं।
४. अथवा भय, जुगप्सा इन दोनों को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं । इनके (९, १२०) इक्यानवै सौ बीस भंग होते हैं। ___ इस प्रकार बारह हेतु चार प्रकार से होते हैं और उनके कुल भंग (३०,४००+२२,८०० + २२,८०० + ६,१२० =८५.१२०) पिचासी हजार एक सौ बीस होते हैं।
अब तेरह बंधहेतुओं के भंगों को बतलाते हैं
१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में एक काय के स्थान पर चार काय का वध लेने पर तेरह हेतु होते हैं। छह काय के चतुष्कसंयोग में पन्द्रह भंग होते हैं, जिससे काय के स्थान पर पन्द्रह रखना चाहिये । तत्पश्चात् पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भंग होते हैं।
२. अथवा भय और कायत्रिक का वध मिलाने पर भी तेरह हेतु होते हैं। उनके (३०,४००) तीस हजार चार सौ भंग होते हैं।
३. इसी प्रकार जुगप्सा और कायत्रिकवध रूप तेरह हेतुओं के भी (३०,४००) तीस हजार चार सौ भंग होते हैं।
४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायद्विक वध को लेने पर भी तेरह हेतु होते हैं। इनके भी पूर्ववत् (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भग होते हैं।
इस प्रकार तेरह बंधहेतु चार प्रकार से होते हैं और उनके कुल भगों का योग (२२,८००+३०,४०० +-३०,४०० + २२,८०० = १,०६,४००) एक लाख छह हजार चार सौ है।
इस प्रकार से तेरह हेतुओं के भगों का कथन करने के बाद अब चौदह हेतुओं के भंगों को बतलाते हैं
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