Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११
कायवध के स्थान पर बीस का अंक रखकर क्रमशः अंकों का गुणा करने पर (२४,०००) चौबीस हजार भंग होते हैं।
३. अथवा जुगुप्सा और कायत्रिकवध को मिलाने से भी बारह हेतु होते हैं। इनके भी ऊपर कहे गये अनुसार (२४,०००) चौबीस हजार भंग होते हैं।
४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायद्विकवध को मिलाने पर भी बारह हेतु होते हैं । इनके भी पूर्ववत् (१८,०००) अठारह हजार भंग होते हैं। ___ इस प्रकार बारह हेतु चार प्रकार से होते हैं । इनके कुल भंग (१८,०००+२४,००० + २४,०००+१८,००० = ८४,०००) चौरासी हजार भंग होते हैं। ___ अब तेरह हेतु के भंगों को बतलाते हैं--
१. पूर्वोक्त नौ हेतुओं में कायपंचकवध को मिलाने पर तेरह हेतु होते हैं। छह काय के पंचसंयोग में छह भंग होते हैं । अतः कायवध के स्थान पर छह का अंक रखकर क्रमपूर्वक गुणा करने से (७,२००) बहत्तर सौ भंग होते हैं।
२. अथवा भय और कायचतुष्कवध को मिलाने से भी तेरह हेतु होते हैं। चार के संयोग में कायवध के पन्द्रह भंग होते हैं । उन पन्द्रह भंगों को कायवध के स्थान पर रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (१८,०००) अठारह हजार भंग होते हैं।
३. जुगुप्सा और कायचतुष्कवध के मिलाने से भी होने वाले तेरह हेतुओं के (१८,०००) अठारह हजार भंग जानना चाहिये।
४. अथवा भय, जुगुप्सा और कायत्रिकवध को मिलाने से भी तेरह हेतु होते हैं । कायत्रिकवध के संयोग में छह काय के बीस भंग होते हैं । अतः कायवध के स्थान पर बीस का अंक रखकर क्रमशः अंकों का गुणा करने पर (२४,०००) चौबीस हजार भंग होते हैं।
इस प्रकार से तेरह बंधहेतु चार प्रकार से बनते हैं और उनके कुल भंगों का योग (७,२००+१८,०००+१८,०००+२४,००० =६७,२००) सड़सठ हजार दो सौ होता है।।
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