Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंबहेतु-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ११
स्थान पर छह का अंक रखकर अनुक्रम में अंकों का गुणा करने पर (७,२००) बहत्तर सौ भंग होते हैं।
इस प्रकार पन्द्रह हेतु तीन प्रकार से बनते हैं और उनके कुल भंग (१,२००+१,२००+७,२०० =६,६००) छियानवै सौ होते हैं ।
अब सोलह बंधहेतु और उनके भंगों को बतलाते हैं
पूर्वोक्त नौ बंधहेतुओं में भय, जुगुप्सा और छहों काय का वध मिलाने से सोलह हेतु होते हैं। काय का छह के संयोग में एक भंग होता है। उस एक भंग को कायवध के स्थान पर रखकर क्रमश: अंकों का गुणा करने से (१२००) बारह सौ भंग होते हैं। विकल्प संभव नहीं होने से सोलह हेतु के अन्य प्रकार नहीं बनते हैं।
इस प्रकार मिश्रगुणस्थान में नौ से सोलह तक के बंधहेतु होते हैं। इनके कुल भंगों का जोड़ तीन लाख, दो हजार, चार सौ (३,०२,४००) है।
मिश्रगुणस्थान के बंधहेतुओं के प्रकारों और उनके भंगों का सरलता से बोध कराने वाला प्रारूप इस प्रकार हैबंधहेतु हेतुओं के विकल्प
विकल्प प्रकार
| के भंग कुल भगसख्या ६ । १ वेद, १ योग, १ युगल, १ इन्द्रिय- ।
असंयम, अप्रत्या० तीन क्रोधादि, १ कायवध
७२०० । ७२००
Rames
जुगुप्सा
पूर्वोक्त नौ, कायद्विकवध
१८००० भय । ७२०० । ७२०० - ३
३२४०० पूर्वोक्त नौ, कायत्रिकवध
२४००० कायाकवच, मय । १८००० जुगुप्सा
१८००० भय, जुगुप्सा ७२००
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