Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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dana arr अधिकार : गाथा ११
१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में पांच कायवध को ग्रहण करने पर चौदह हेतु होते हैं । कायपंचक के संयोग में छह काय के छह भंग होते हैं । उन छह भंगों को कायवध के स्थान पर स्थापित कर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (६, १२० ) इक्यानवे सौ बीस भंग होते हैं ।
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२. अथवा भय और कायचतुष्क का वध मिलाने से भी चौदह हेतु होते हैं । उनके पूर्ववत् ( २२,८००) बाईस हजार आठ सो भंग होते हैं ।
३. इसी प्रकार जुगुप्सा और चार काय का वध मिलाने से भी चौदह हेतु होते हैं। उनके भी (२२,८००) बाईस हजार आठ सौ भग होते हैं ।
४. अथवा भय, जुगुप्सा और कार्यत्रिक का वध मिलाने से भी चौदह हेतु होते हैं । कायवधस्थान में त्रिकसंयोग में बीस भांग रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (३०,४०० ) तीस हजार चार सौ भांग होते हैं ।
इस प्रकार चौदह बंधहेतु चार प्रकार से होते हैं । उनके कुल भगों का योग (६, १२० + २२,८०० + २२,८०० + ३०,४०० ८५, १२० ) पिचासी हजार एक सौ बीस है ।
अब क्रमप्राप्त पन्द्रह हेतुओं के भांगों को बतलाते हैं१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में छह काय का वध मिलाने पर पन्द्रह हेतु होते हैं । छह काय के वध का एक भंग होता है । उस एक भग को कायवधस्थान पर रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणाकार करने पर (१,५२०) पन्द्रह सौ वीस भंग होते हैं ।
२. अथवा भय और पंचकायवध मिलाने पर भी पन्द्रह हेतु होते हैं । उनके पूर्व की तरह ( ६१२० ) इक्यानवे सौ बीस भांग होते हैं । ३. अथवा जुगुप्सा और पंचकायवध मिलाने पर भी पन्द्रह हेतु होते हैं । उनके पूर्व की तरह (६, १२० ) इक्यानवे सौ वीस भंग होते हैं ।
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