Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु - प्ररूपणा अधिकार, गाथा ४
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इस प्रकार से मिथ्यात्व आदि बन्धहेतुओं के अवान्तर भेदों को बतलाने के बाद अब इन मिथ्यात्वादि मूल बंधहेतुओं को गुणस्थानों में घटित करते हैं ।
गुणस्थानों में मूल बंधहेतु
चउपच्चइओ मिच्छे तिपच्चओ मीससासणाविरए । दुगपच्चओ पमत्ता उवसंता जोगपच्चइओ ||४|| शब्दार्थ - चउपच्चइओ - चार प्रत्ययों, चार हेतुओं द्वारा, मिच्छेमिथ्यात्वगुणस्थान में, तिपच्चओ-तीन प्रत्ययों - तीन हेतुओं द्वारा, मीससासणाविरए - मिश्र, सासादन और अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में, दुगपच्चओ-दो प्रत्ययों द्वारा पमत्ता - प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थानों में, उवसंता - उपशांतमोह आदि गुणस्थानों में, जोगपच्चइओ - योगप्रत्ययिक - योगरूप हेतु द्वारा |
गाथार्थ - मिथ्यात्वगुणस्थान में चार हेतुओं द्वारा, मिश्र, सासादन और अविरत गुणस्थानों में तीन हेतुओं द्वारा प्रमत्त आदि गुणस्थानों में दो हेतुओं द्वारा और उपशांतमोह आदि गुणस्थानों में योग द्वारा बन्ध होता है ।
विशेषार्थ - गाथा में सामान्य बन्धहेतुओं को गुणस्थानों में घटित किया है कि किस गुणस्थान तक कितने हेतुओं के द्वारा कर्मबन्ध होता है ।
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इस विधान को पहले मिथ्यात्वगुणस्थान से प्रारम्भ करते हुए बताया है कि 'चउपच्चइओ मिच्छे' - अर्थात् मिथ्यादृष्टि नामक पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व, अविरति कषाय और योग रूप चारों हेतुओं द्वारा कर्मबन्ध होता है । क्योंकि मिथ्यात्वगुणस्थान में चारों बन्धहेतु हैं और चारों बन्धहेतुओं के पाये जाने के कारण को पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि पूर्व हेतु के रहने पर उत्तर के सभी हेतु पाये जाते हैं । इसलिए जब मिथ्यात्वगुणस्थान में मिथ्यात्व रूप हेतु है, तब उत्तर के अविरति कषाय और योग, ये तीनों हेतु अवश्य ही पाये जायेंगे । इसीलिए मिथ्यात्वगुणस्थान में चारों बन्धहेतु हैं ।
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