Book Title: Nyayaratna Sar
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 26
________________ चतुर्थ अध्याय में सप्तभंगी का विस्तार से होता है । पदों का वही समूह वाक्य कहा जाता है, वर्णन किया है । स्थाढाद और सप्तभंगी जैन दर्शन जो योग्य अर्थ का बोध करा सकता हो। के आधारभूत सिद्धान्त हैं । वस्तु के यथार्थ स्वरूप सप्त भंगी क्या है ? किसी एक ही वस्तु में, को सपझने के लिए सप्तभंगी को समझना परम किसी एक धर्म सम्बन्धी प्रश्न के अनुरोध से आवश्यक माना जाता है। सात प्रकार के वचन प्रयोग को सप्तभंगी कहते चतुर्थ अध्याय में तीसरा विषय है, प्रमाण की हैं। वह वचन 'स्यात्' पद से युक्त होता है, उसमें विषयभूत वस्तु का स्वरूप । यदि वस्तु के स्वरूप कहीं विधि होती है। कहीं निषेध होता है। कहीं नो सम्यक प्रकार से नहीं समझा, तो सब व्यर्थ है। पर उभय भी होते हैं । यही है. सप्तभंगी । जैसेवस्तु क्या है ? वस्तु अनेकान्तात्मक है। वस्तु में १. स्यात् अस्ति घटः अनेक धर्म एक साथ रहते हैं। उन सबका एक २. स्यात् नास्ति घटः साथ बोध सम्भव नहीं है। मुख्य-गौण भाव से ही ३. स्यात् अस्ति-नास्ति घटः उनका परिज्ञान होता है। वस्तुतः यही तो सप्त ४. स्यात् अवक्तव्यो घटः भंगी का विषय रहा है । ५. स्यात् अस्ति अवक्तव्यो घटः ___ आगम प्रमाण क्या है ? आप्त पुरुष के बचन ६. स्यात् नास्ति अवक्तव्यो घटः से होने वाले पदार्थ के ज्ञान को आगम कहते हैं । ७. स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्यो घटः १. विधि की कल्पना से प्रथम भंग उपचार से आप्त का वचन भी आगम कहा जाता २. निषेध की कल्पना से द्वितीय भंग है । आप्त क्या है ? प्रामाणिक पुरुष को आप्त पुरुष ३. क्रमशः विधि-निषेध कल्पना से तृतीय भंग कहते हैं । आप्त पुरुष के शब्दों को सुनकर श्रोता को पदार्थों का जो ज्ञान होता है, उसी ज्ञान को आगम ४. युगपत् विधि-निषेध कल्पना से चतुर्थ भंग कहते हैं। अतः शब्द कारण हैं, और ज्ञान कार्य । ५. युगपत् विधि कल्पना से पंचम भंग कारण में कार्य का उपचार करने से आप्त के वचन ६. युगपत् निषेध कल्पना से षष्ठ भंग भी आगम हैं। ७. क्रमशः विधि-निषेध कल्पना से सप्तम भंग सप्तभंगी के दो भेद हैं—सकलादेश सप्तमिथ्या भाषण के दो कारण हैं-अज्ञान और भंगी और दिकलादेश सप्तभंगी। जो सप्तभंगी कषाय । मनुष्य किसी वस्तु का स्वरूप समझ बिना प्रमाण के अधीन होती है, वह सकलादेश और जो यदि कथन करता है, तो उसका कथन मिया नय के अधीन होती है, वह विकलादेश सप्तभंगी। होगा। परन्तु जिसका ज्ञान यथार्थ है, और तदनुसार ही कथन है, तो वह कभी मिथ्या नहीं होगा । पञ्चम अध्याय सर्वज्ञ का कथन सर्वथा यथार्थ ही होता है । अतः __न्यायरत्नसार ग्रन्थ के पञ्चम अध्याय में वह आप्त है, उसका कथन भी यथार्थ होता है। प्रमाण-फल पर विचार किया गया है। प्रमाण वचन क्या है ? वर्ण, पद तथा वाक्यरूप वचन सामान्य का क्या फल है ? विशेष प्रमाणों का क्या होता है। परस्पर सापेक्ष वर्गों के समूह को पद फल है। उसके बाद आभासों का वर्णन किया गया कहते हैं। पदों के समूह को वाक्य कहते हैं । ये है। जैसे प्रमाण और प्रमाणाभास । प्रत्यक्षाभास वर्ण भाषा वर्गणा के पुद्गल द्रव्य से बनते हैं। और परोक्षाभास । अनुमान और अनुमानाभास । फिर पद और फिर वाक्य । जैसे महावीर यह वर्ण आगम और आगमाभास । हेतु और हेत्वाभास। समूहपद है, क्योंकि इससे वर्धमान के अर्थ का बोध आचार्य वादिदेव मूरि और आचार्य हेमचन्द्र

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