Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ३६८ नागरीप्रचारिणी पत्रिका जाने पर उसका राजा द्वारा वहाँ से निकाला जाना तथा उसका अलाउद्दीन के पास जाकर पद्मिनी के सौंदर्य की प्रशंसा करना बतलाता है और जटमल राघव चेतन का राजा के साथ, सिंहल से उड़नखटाले में बैठ चित्तौड़ आने का उल्लेख कर कहता है कि राजा पद्मिनी पर इतना अधिक आसक्त हो गया कि उसको देखे बिना जल तक नहीं पीता था । एक दिन वह शिकार को गया, जहाँ प्यास से व्याकुल हो गया; जिस पर राघव ने ठीक पद्मिनी के सदृश पुतली बनाई, यहाँ तक कि पद्मिनी की जंघा पर का तिल भी विद्य मान था । उस तिल को देखकर राजा को उस पर संदेह हुआ और उसको उसने अपने यहाँ से निकाल दिया । जायसी ने राघव चेतन के दिल्ली जाने और पद्मिनी के रूप की बादशाह से प्रशंसा करने पर बादशाह के उस पर आसक्त होने और रत्नसिंह के पास दूत भेज पद्मिनी दे देने के लिये कहलाने तथा उसके इनकार करने पर चित्तौड़ पर चढ़ाई करने का उल्लेख किया है । जमल ने राघव चेतन का साधु बनकर दिल्ली जाना, उसकी गान - विद्या से अलाउद्दीन का उससे प्रसन्न होना, एवं पद्मिनी आदि चारों जाति की स्त्रियों का वर्णन करने पर बादशाह का पद्मिनी जाति की स्त्री पर आसक्त होना और पद्मिनी के लिये चित्तौड़ पर चढ़ आना बतलाया है । जायसी का कथन है कि आठ वर्ष तक चित्तौड़ को घेरे रहने पर भी सुलतान उसको फतह नहीं कर सका। ऐसे में दिल्ली पर शत्रु की पश्चिम की ओर से चढ़ाई होने की खबर पाकर उसने कपटकौशल से राजा को कहलाया कि हम आपसे मेल कर लौटना चाहते हैं, पद्मिनी को नहीं माँगते । इस पर विश्वास कर राजा ने उसको चित्तौड़ के दुर्ग में बुलवाकर आतिथ्य किया । वहाँ पर शतरंज खेलते समय अपने सामने रखे हुए एक दर्पण में पद्मिनी का प्रतिबिंब देख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118