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नागरीप्रचारिणी पत्रिका दपटें लपटें पटकें उठकें कर दाँत कटाकट देह विदारे । शृंगन बृच्छन अंगन से बर अंग भड़ाक पहाड़ से फारे ॥ मुष्टि के कष्ट कनिष्ट हटे तब दृष्ट के घृष्ट से इष्ट पोकारे । अगस्त के दस्त के तोर की सिस्त में काल के गस्त में बालि को मारे ॥६॥ हिय फाड़ गड़े से पहाड़ डिगे तब दूर से दीनदयाल देखाने । पास बोलाय कहा लड़को तुम राजकुमार कि चोर छिपाने । तीर कमान वही सनमान जवान जताय को बान को माने । तिया बरजे गरजे न सहा तृण-कूप को यूप धराधर जाने ॥१०॥ राम कहें कपि क्यों कलपे अलपे अपराध न बाधत प्रानी। भत के भ्रात सो उर्त नहीं तिय बंध बधू तुम भोगत मानी ॥ हम दीनदयाल निहाल करें जिहिं हाथ धराय बँधाय जबानी। एतनी सुन बालि धरे कर भाल कृपाल कृपा करो मैं अब जानी ॥१२॥ बँदरी बँदरा मरना सुन के बन आय को बालि बिलोक को रोवे । अंगद अंग छुवे पर पाय उठाय को गोद* बैठाय को रोवे॥ तात तजो तुम जाति-सुभाव सहो सुख दुःख चचा खुश होवे । एतनी कह माल पिन्हाय सुग्रीव कों बान निकासत प्रान को खोवे ॥१२॥ सुषेण-सुता तारा सिगरी पति-अंग उठाय प्रालिंगन देहैं। लछमन हनुमान कहे करनी करने को चले कपि यान गहे हैं । अंगद अंग दहे पितु के सब स्नान किए हरि नग्र चले हैं। हनुमान कहे प्रभु नग्र चलो ऋतु पावस मास में पास रहे हैं ॥१३॥ राम कहे हम काम तजे बनबास सजे नहिं नग्र चहेंगे । तुम भामिनि भूम सिराय को आओ हम न घन दामिनी झार जरेंगे।
* पास। + टोवे। --घृष्ट = इशारा। दस्त = हाथ । सिस्त = श्राब, धार। गस्त - फेर। १०--तृण-कूप =जिस कुँए का मुख घास-पात से छिपा हो।
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