Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 49
________________ प्रेमरंग तथा आभासरामायण ४३५ घर घर घूमत कूदत धावत निकसत पैठत कहीं न बैठत । रावन सदन बदन तिय देखत स्यंदन बिमान हेरन निकरो॥हनु०॥५॥ तिल तिल जल थल महल हेर हरि हार हदस चिंता चित बाढ़ी। कहीं न देखानी रैन बिहानी पुन खोजत घर घर सिगरो॥हनु०॥६॥ बनिक असोक लखी मृगनैनी अल्प रहो पिछली जब रैनी। शिंशु शाख शुक* रूप धरयो तब रावन आवन शबद परो ॥हनु०॥७॥ नरम गरम कहि सिय धमकाई रावण तृण लख कोपत माई । धिक तोहे मोहे रघुनाथ नाथ बिन नहिं दुसरो नर दृष्ट परो ।हनु०॥८॥ खड्ग काढ़ मारन कों धायो मंदोदरी समुझाय फिरायो । यातुधानि बमकी दबकी त्रिजटा सपने दशकंध मरो ॥हनु०॥६॥ भर्त्ता-बिजय सुनत सिय हरखी बाई ओर बाई भुजा फरकी। उखताय मर नगर में धरि बेनीतब हरिरघुबर जस उचरो॥हनु०॥१०॥ चकित होय चितवत चहुँ दिस कपि बर मुख निरखत हरख डेरानी। धीरज देवतिया लैके रघुनाथ कुशल कहि काज सरो।हनु०॥११॥ सुनि सुग्रीव सनेही सँग में राम लच्छन के लच्छन अंग में । दूत हरी लख आँख भरी अँगुरी मुंदरी दै पाय परो ।।हनु०॥१२॥ श्रवन सुनत सिय नैन अवे कपि कहतराम आवत इत जलदी । दिन नहिं चैन रैन नहिं निद्रा सिया नाम को मंत्र ठरो॥हनु०॥१३॥ बिदा करत मनि देत चिन्हाई काक तिलक की कथा सुनाई । लछमन मनाय रघुबर ले आय सुग्रीव सहाय समुद्र तरो॥हनु०॥१४॥ एक मास जीवन सुन मणि ले बिदा होय मन तोड़ दियो । बना गिराय बनपाल मार जै राम दूत कहि सोर करो ।हनु०॥१५॥ असी हजार किंकर बिदार पुनि सात पाँच मंत्रिन सँघार । अक्षकुमार मार सुरबर-रिपु हार संभार न अस्त्र धरो ।।हनु०॥१६॥ * शिशु। ४० गृह । १६-सुरबर-रिपु=इंद्रजीत । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118