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प्रेमरंग तथा प्रामासरामायण
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बजदंष्ट्र मरा तब अकंपन आया। फौज सज चला जरा असगुन सो डरपाया । हरीगण की फौज भगाई। पटे औ तरवार चलाई ॥ प्रास तोमर की मार कराई । कुमुद और मैंद भगाई ॥
ललकार निशाचर फौज परताई ॥५०॥ हनुमान् पैठे दल में राखस को घेर लिए । लोहू-नदी बही मही मुरदे बिछाय दिए । दरखत निशाचर ने छेदा । शिखर सो निशिचर को खेदा*। छितराय दिया हाड़ चाम औ मेदा । अकंपन हनुमान रगेदा ॥
दरखत सों मार सरीर सब भेदा ॥५१।। हनूमान बल बखान को सभी स्तुती करें। रावण सुना अकम्पन हनूमान सों मरें। डरे टुक प्रहस्त बोलाया । बखाना बहोत बढ़ाया ।। सरदार सेनापत तैयार कराया। बिभीषन ने नाव बताया।
रथ चढ़ निशिचर बेशुमार ले आया ॥५२॥ नरांतक औ कुम्भहनू महानाद समुन्नत । द्विविंद तार दुर्मुख जांबुवान सों पाई गत ॥ राखस को बंदर बिदारे । कैएक बंदर निशिचर सों हारे ।। रुधिर के दर्याव कर डारे । प्रहस्त सेनापति नील ललकारे ॥५३।। नग-शृंग ले पिला मिला सेनापती प्रहस्त । बानों से काट पर्वत बंदर को किया सुस्त ॥ नील को होश जोश जब जागा । लशकर निशाचर का भागा ॥ प्रहस्त कूदा टूटे रथ को त्यागा। मूशल लेकर नील सों लागा ॥
घुमाय बल सो छाती नील की दागा ॥५४॥
७ फेदा।
१-मही= पृथ्वी ।
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