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नागरीप्रचारिणी पत्रिका प्रभु सीता त्याग कर दीनी। कसम कर को आग ने लीनी॥ बिधिबेदबानी बोले रामस्तुति कीनी । भाई मायाराम की चीन्ही ॥
दशरथनंदन से सब व्यक्त है हीनी ॥११४॥ अगिन तें सिया लीनी* लीनी गले लगाय । शंकर बखान कर गए दशरथ कों मिले धाय ॥ इंद्र ने आसीस गुजरानी । जीवे बाँदर फल फूल ओ पानी ।। नित नित्त पावें ऐसी बोल दी बानी । उठेसबजोरैन बिहानी ।।
सिय राम लछमन ने अचरज सी मानी ॥११॥ सब देव भए बिदा गुरु बिदाई। बिभीषन दीनी । पुष्पक विमान चढ़ चले सँग फौज अनगिनी ॥ निशाचर की रनभूमि देखाई । समुंदर किष्किंध चढ़ाई। ऋष्यमूक पंपा जनस्थान लखाई । कुटी चित्रकूट की आई ॥
मुकाम प्रयाग मो पंचमी पाई ॥११॥ हनुमान ने जाय संदेशे जब भरथ को कहे। आनंद भरे डगर नगर भेंट कर गहे। चले प्रभु को मिलन को । अवध में उत्साह है जन को ॥ जननी चलींसभी संगले धन को। आए राम ग्राम मध्य भवन को॥
राज लीना भाया भरत के मन को ॥११७॥ रथ पर चले नगर को त्रिभुवन में जैजैकार । इक्ष्वाकुकुल में आय किया अभिषेक सरंजाम तैयार ॥ समुंदर-जल बंदर सबल्याए।सुर मुनिजन मिल राम नहल्याए।। सिंघासन बैठे गुरु ने कीट पहनाए । सब घर गए हनुमान बर पाए ।
दस साल हजार सुख देखलाए ॥११८॥
अगिन ने सिया दीनी।
दावत ।
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