________________
नागरीप्रचारिणी पत्रिका
सुमाली माल्यवान माली । सालंकटंकट के कुल पाली ॥ छिनाई लंक बनमाली । बचे दो भाग लड़ मर कों ॥ ४ ॥ सुमाली की कुमारी से । रावन घटकर्ण सुपनखी से ॥ जन बिभीषन अधिकारी से । बढ़े बर पाय तप कर क ॥ ५ ॥ लंका धनपाल सों छीनी । बिहाय मंदोदरी लीनी ॥ जना सुत नाद धन कीनी । सोप्रा घटकर्ण किए घर कों ॥ ६ ॥ धनेश का दूत खिलाय डाला । चढ़ाधनपाल गिराय डाला ॥ उठाय कैलास हिला डाला । शंकर सों रोय लिया बरकों ॥ ७ ॥ दहा तन वेदवती सीता । मस्त लाचार सों जीता ॥ अनन्य के शाप भयभीता । जिताया अजब जमपुर कों ॥ ८ ॥ नागों का पुर किया बस में। दोनों दानों से कर कसमें ॥ बरुण बेटे बचे रस में । बली बामन कहे हर क ॥ ८ ॥ उछल पाताल में रवि सों । कहाया हार हजूरी सीं ॥ दिवाने देख गरूरी सों लड़ा मांधात किया दोस्ती ॥१०॥ पवन की आठ सीढ़ी चढ़ । लड़ा रावन सभों से बढ़ ॥ निशाकर ज्यों* अमर हर पढ़ । कपिल से भूल गई मस्ती ॥११॥ कइक तिरिया छिनाय ल्याया । रोई त्रिया श्राप फिर खाया ॥ सुपनखा स्थान खर पाया । कुंभीनसी काज चला गस्ती ॥ १२ ॥ हजारों अक्षौहिणी लेकर । मधू को मिल लिया सँग धर ॥ पकड़ रंभा सों जबरी कर । नलकूबर श्राप बजी स्वस्ती || १३ | सरग पहुँचे अमर सुन कों । बचन वामन लड़न सुन कों ॥ सुमाली मात बस सुन को । शचीपति घेर लिया हस्ती || १४ || रावन को घेर लिया सुनकर । लड़ा घननाद अँधेरा कर ॥ पुलोमापूत भगाया डर । छोड़ाय रावन किया कुस्ती ॥१५॥
४६२
* श्रोत । १५ - पुलेामापूत - इंद्र |
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com