Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 107
________________ विविध विषय ४-८३ इस पक्ष के पंडितों की दृष्टि इस ओर तनिक भी नहीं मुड़ती कि इस सन् का संबंध शाहेवक्त से नहीं है । "सेरसाहि देहलीसुल्तानू” से “सन् नव से सैंतालीस " तक पर्याप्त अंतर है । प्रथम १२ वें दोहे के अनंतर आता है और द्वितीय २३ वें के । स्पष्ट है कि इस सन् का संबंध शाहेवक्त से, जैसा भ्रमवश लोग समझते हैं, कदापि नहीं है । यह तो कथा के आरंभ का समय है- " कथा रंभ बैन कवि कहा" । कैथी लिपि के पक्ष में एक अकाट्य प्रमाण यह है कि स्वयं जायसी ने अपनी अखरावट में इसी लिपि के वर्णों का परिचय दिया है । अखरावट की रचना पदमावत से पहले की गई थी । इसका ढ़ प्रमाण यह है कि कबीरदास का संकेत अखरावट में विस्तार के साथ किया गया है । कबीरदास की निधन - तिथि, किसी प्रकार भी, पदमावत के आरंभ के पहले ही रहती है । इस विषय पर हम पहले ही अधिक विवेचन कर चुके हैं । इस प्रकार अखरावट का रचना - काल किसी भी दृष्टि से सं० १५७५ के अनंतर नहीं जा सकता । यदि हम पदमावत की आरंभ तिथि सन् ६४७ स्वीकार करते हैं तो इस २० वर्ष, या इससे भी अधिक समय तक जायसी का मौन रहना संगत नहीं जान पड़ता । इस दृष्टि से विचार करने पर यह स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि अखरावट के अनंतर पदमावत का आरंभ अवश्य ही किया गया होगा, क्योंकि उसके आख्यान में अखरावट के सिद्धांतों का मधुर व्याख्यान ही है । हम यह पहले ही लेख में कह चुके हैं कि धर्म तथा प्रचार की दृष्टि से भी कैथी लिपि का होना ही अधिक संभव है । यदि हम ओकाजी के इस कथन को मान भी लें कि शेरशाह के समय में उर्दू लिपि की सृष्टि हो चुकी थी तो भी हमारे कथन में विशेष बाधा नहीं पड़ती । यदि उस समय उर्दू का पर्याप्त प्रचार होता तो अकबर को फारसी की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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