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विविध विषय
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भंडारकर ने जून १८३२ के इंडियन ऐंटोकेरी में एक लेख लिखा है । शुंग वंश के महाराजा ब्राह्मण जाति के थे। इनके समय में, विशेषकर पुष्यमित्र के समय में, ब्राह्मण धर्म ने फिर बहुत उन्नति की । इनका मत है कि पुराणों और महाभारत में जो विष्णुयशस् ब्राह्मण के यहाँ कल्कि अवतार होने का वर्णन है वह इसी पुष्यमित्र के विषय में है । कलियुग का वर्णन पुष्यमित्र के पूर्व की स्थिति से बिलकुल मिलता-जुलता है। कलियुग के पीछे कृत युग होनेवाला था । इसलिये पुष्यमित्र ने ही कृत संवत् ५७ ई० पू० में चलाया, ऐसी कल्पना उक्त महाशय की है ।
इतिहासज्ञों के मत से पुष्यमित्र का काल १८० ई० पू० माना जाता है । आप इस मत का खंडन करने का प्रयत्न करते हैं, पर आपके मत के समर्थन में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं मिलता ।
( २ )
मोहेंजोदरा और हरप्पा में जो मुहरें मिली हैं उनके पढ़ने का प्रयत्न जून १९३२ की इंडियन हिस्टारिकल कारटरली में डाक्टर प्राणनाथ द्वारा जारी है । इस विषय का कुछ वर्णन श्रावण १८८६ की नागरीप्रचारिणी पत्रिका ( १३ -२ ) में दिया जा चुका है।
ऐसा मालूम पड़ता है कि सिंधु नदी की तरैटी में लोग जिन देवताओं को पूजते थे उनमें से कुछ तो देशो और कुछ विदेशो-जैसे बैबिलन प्रांत के — थे । गौरीश, नागेश, नगेश, शिश्न, हों, श्रीं क्लीं इत्यादि
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नाम उन लोगों के देवताओं के हैं और ये स्थानीय देवता जान पड़ते हैं । इन्नो, इनी, सिन्, नन्ना, गग, गे इत्यादि सुमेरियन देवताओं के प्रसिद्ध नाम हैं और सिंधु के लेखों में अक्सर पाए जाते हैं । डाक्टर साहब का मत है कि चामुंडा देवी के विषय के ग्रंथ में आपको इन नामों का पता मिलता है। I ऐसे ही कुछ नाम दक्षिण भारत में पाए गए पुराने मिट्टी के बर्तनों पर भी मिलते हैं । इसलिये
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