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नागरीप्रचारिणी पत्रिका की है। स्वयं ओझाजी सिंहल द्वीप की पद्मिनी तथा गोरा बादल के विषय में यही कहते हैं। जालौर का मालदेव एक अप्रसिद्ध व्यक्ति था। यदि जायसी को इतिहास की छानबीन से उसका पता चला होतातो वे उसको पद्मावती के मुँह से इस प्रकार सम्मानित न करते। इतिहास इस बात का साक्षी है कि गोरा बादल का महत्त्व इस मालदेव से कहीं अधिक था। फिर इस मालदेव ने किसको शरण दी थी; क्या काम किया था ? इसका नाम तो सन् १३११ के अनंतर आता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जायसी की पदमावत में तत्कालीन मालवदेव का ही संकेत है। आशा है, श्रद्धेय ओझाजी हमारी धृष्टता पर ध्यान न दे सत्य का प्रकाशन करने का कष्ट करेंगे।
चंद्रबली पांडेय
[४] पुरातत्त्व
विक्रम संवत् का वर्णन आरंभ में कृत संवत् के नाम से आता है। लोग मानते हैं कि विक्रमादित्य सन् ई० से ५७ वर्ष पूर्व हुए। पर इस विश्वास के लिये कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। खिष्टीय पांचवीं शताब्दी के पूर्व संवत् वर्षों का नाम कृत वर्ष लिखा है और उन लेखों में किसी प्रकार का संकेत भी नहीं है कि इन वर्षों का संबंध विक्रमादित्य से किसी प्रकार रहा हो। तो फिर कृत वर्ष का-"कृता: वत्सराः" का अर्थ क्या है। राजपूताना के उदयपुर राज्यांतर्गत नंदासा ग्राम में इस संवत् का अति पुराना शिलालेख मिला है। उसमें मिती इस प्रकार लिखी है-कृतयोर्द्वयोर्शतयोद्वर्थशीतय = कृत २०० +८०+२ । ऐसे लेखों में कृत शब्द का संबंध सदैव वर्ष से रहता है। इस विषय में डाक्टर डी० आर०
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