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नागरीप्रचारिणो पत्रिका
ललाट खल-दल खंडिबा बिहंडिबो बिघन-बृद,
राम-रति मंडिबो घमंडी घमासान को । संकट की खालिबो प्रसन्न प्रन पालिबो,
असंतन को सालिबो प्रदाता बरदान को । भने कबि 'मान' सुर संतन के त्रान लिख्यो
जामें विधि-सान तप तेज नहिं मान को । ब्याज उदघाट करै अरिन उचाट कालबंचन कपाट यों लिलाट हनुमान को ॥६॥
भाल बज्र की झिलनि मंडिलनि की गिलनि,
रघुराज कपिराज की मिलनि मजबूत के । सिंधु-मद झारिबो उजारिबो बिपिन लंक,
वारिबो उबारिबो बिभीषन के सूत के ॥ भने कबि 'मान' ब्रह्मसक्ति प्रसि जान राम
भ्राता-प्रान-दान द्रोन-गिरि के अकूत के । रंजन धनी को सोक-गंजन सिया को लिखो, भाल खल-भंजन प्रभंजन के पूत के॥७॥
भौंह खटकी दसानन को चटकी चढ़ी सी वाकि,
अँटकी है सदा प्रान-कला अक्ष भट की। ब्रह्मसक्ति फटकी सु झटकी तरेरि पेखि
पटकी सटकि मेघनाद से सुभट को (१)॥ 'मान' कबि रट की सुवट की प्रतिज्ञा पालि,
लटकी त्रिलोकी जाति देखे जाहि मटकी।
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