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खुमान और उनका हनुमत शिखनख ४८३
लंक-मनुजादिनी-बिदारन के तूत की ॥ मीचु दसकंठ की सुकंठ की मिताई बाल
कंठ की कटाई सितकंठ हित हूत की। वंजुली-मुकुल कंज-कुंडमल मंजुली सु बंदी कर-अंजुली प्रभंजन की पूत की ॥ ३७॥
छाती सेर जुत साहस सुमेरु की सिला है, किधौं
उपज इला है बाल बिक्रम के तूत की। किधौ दससीस-बल पीसबे की पेषनी है,
रेखनी है किधी कोट बज्र के अकूत की॥ 'मान' कबि किधौं कला काल के कपाटनि की
___अरि-उद्घाटनि को पाट मजबूत की। वीर-मद-माती रन-रोस सो धंधाती रामभक्ति-रस-राती धन्य छाती पौनपूत की ॥ ३८ ॥
उदर भरयो जात जामें सिया-राम को प्रसाद जो
बिषाद हरदाया को निधान बे गरज को। प्रगटे त्रिलोक जाते नाग नर देव अद्य
देव कुक्षि सातहू समुद्र के दरज को॥ भनै कवि 'मान' नदी नाड़ी बहै आड़ी जोति- जोग कल माड़ी तप तेज के तरज को। प्रलै को प्रखंड ब्रह्मांड को पिठर लोह - लठर जठर बंदों पौन-जठरज को॥३६॥
कटि मृगपति-लंक बंक रंक छबि लागे स
कलंक लंक जारै कल किंकिनी के रट को।
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