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खुमान और उनका हनुमत शिखनख कालनेमि-तन के बिदीरन-करन
अवदीरन-करन धूमलोचन दुरंत के॥ भने कबि 'मान' हलाहल के समान
मघवान के गुमान गंज भंजन दुखंत के। सूल ते सखर अक्ष बक्ष के बखर (?) बंदी बन हूँ ते प्रखर नखर हनुमंत के ॥४॥
सर्वांग राम-रज-भाल की जै रबि गिल गाल की जै,
अंजनो के लाल की कराल हाँकवारे की। बीर बरिबंड की उदंड भुजदंड की जै,
महामुखमंड की प्रचंड नाकवारे की ।। भनै कबि 'मान' हनुमान बजरंग की जै,
अचनि अभंग की बँकैत बाँकवारे की। जै जै सिंधु नाकुरे की ढाल पग ठाकुरे की काकिनि के बाँकुरे की बाँकी टाँगवारे की ॥५०॥
सर्व शरीर ज्वाला सों जलै ना जल-जोग सो गलै ना,
अस्त्र-सस्त्र सो घलै ना जो चलै ना जिमी जंग की। कालदंड ओट सत कोट को न लागै चोट,
सात कोटि महामंत्र मंत्रित अभंग की। मनै कबि 'मान' मघवान मिलि गीरबान,
दीन्हें बरदान पवमान के प्रसंग की। जीते मोह-माया मारि कीन्हीं छार छाया,
रामजाया करी दाया धन्य काया बजरंग की ॥५१॥
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