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(१६) विविध विषय
[१] सावयधम्म दोहा मूल-लेखक देवसेन; अनुवादकर्ता प्रोफेसर हीरालाल जैन एम० ए०, एल-एल० बी०; दोहा-संख्या २२४; पृष्ठ-संख्या १२५; मूल्य २॥); प्रकाशक सेठ गोपालदास चवरे, कारंजा, बरार। ___ यह 'अंबादास चवरे दिगंबर जैन ग्रंथमाला' का द्वितीय ग्रंथ है। चवरे संस्था का परिचय उसके प्रथम ग्रंथ जसहर-चरिउ की समालोचना करते समय इस पत्रिका में एक बार दिया जा चुका है। कारंजा के सेठ अंबादास चवरे ने पर्याप्त दान देकर जैन प्राचीन ग्रंथों के छपाने का प्रशंसनीय प्रबंध कर दिया है। कारंजा के जैन मंदिरों में अनेक प्राचीन ग्रंथों का संकलन है। प्रस्तुत ग्रंथ सेनगण मंदिर के भंडार से से लिया गया है और उसके संशोधन के लिये भारतवर्ष के अनेक स्थानों से सामग्री इकट्ठी की गई है जिसको श्रीयुत हीरालाल जैन ने छानबीन कर मूल-पाठ के स्थिर करने का कुशलतापूर्वक प्रयत्न किया है। उन्होंने मूल के सामने हिंदी अनुवाद देकर इस दसवीं शताब्दी की अपभ्रंश भाषा में लिखित पुस्तक का अर्थ सर्व-साधारण के समझने योग्य कर दिया है और भाषा-तत्त्वज्ञों के लिये सारगर्भित भूमिका लिखकर उस समय की भाषा और ग्रंथकर्ता पर विशेष प्रकाश डाला है। अंत में शब्दकोश और टिप्पणी लगाकर मूल के पूर्ण अध्ययन के लिये मार्ग सुगम कर दिया है।
अनुमानतः दोहा छंद का प्रचार इस ग्रंथ के कर्ता देवसेन के समय के आस-पास ही हुआ क्योंकि उसने इस ग्रंथ के पूर्व और एक ग्रंथ दोहों में लिखा था। उस समय एक मित्र के हँस देने पर
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