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नागरीप्रचारिणी पत्रिका
रोमराजि अरुन ज्यों भौम सो मदगली असोम सोम,
___ कोमल ज्यों छोम कर फेरै सियाकंत के। कहा प्रलै-धोम मुनि लोमस के रोम रन,
बैरिनि-बिलोम अनुलोम सुर-संत के ॥ बज्र मृदु मोमद बिभानु सम सोम जे,
असोम ग्रह सोम कर ओमन के अंत के। खलन के खोम हव्यजा में होत होम जोम
ज्वालन को तोम नौमि रोम हनुमंत के ॥५२॥ ओज-बल-बलित ललित लहरत लखि
जाहिं हहरत किए सेना सुनासीर की। कलप-कृसानु के प्रमानु ज्वालावान
कोट भानु के प्रमानु के समानु रनधीर की ॥ भनै कवि 'मान' मालिवान-भट-भंजिनी है ___अंजनी-सुखद मनरंजनी समीर की। जापै राम राजी कोटि बज्र ते तराजी यह
बंदो तेज ताजी रोमराजी महाबीर की ॥ ५३॥ बाँचै डेढ़मासा सोक-संकट बिनासा, सात
पैतप को तमासा बासा मंगल अनंत को। विभव बिकासा मनबंछित प्रकासा, दसौ
आसा सुख संपति बिलासा कर संत को॥ महाबीर सासा पूजि बीरा औ बतासा, करै
बिपति को ग्रासा वन-त्रासा अरि अंत को। सिखनि सुखासा रिद्धि-सिद्धि को निवासा
यह दास-पास पूरै पौ पचासा हनुमंत को ॥५४॥
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