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खुमान और उनका हनुमत शिखनख
निसाचर-बिनास हेतु केतु उतपात को॥ भने कबि 'मान' रन-मंडप को खंभ, कैधौं
बंधन को रज्जु दसकंधर के जात को। संभु-जटा-जूट, कै अपार हेमकूट, कै त्रिकूट-कूट-गंजन लंगूर बातजात को॥४३॥
ऊरु खलनि को खूदि बज्र-बेग-मद [दि जे वै
सिंधु कूदि सुखद सिया की राम रंजनी । जीते इंद्रजीत की छड़ाई कै चढ़ाई बजी
बिक्रम बड़ाई जे लड़ाई लाड़ अंजनी ॥ भने कबि 'मान' बड़े, बल के बिलास धूम
नास को बिनास दसकंध-मद-भंजनी । धक्का की गरूरी करै धराधर धूर धन्य पौनपूत-अरु जे असुर-गर्भ-गंजनी ॥४४॥
जानु कीन्हो धूमनास को बिनास जिन रौंदि खाँदि,
लाखन को खंडित जे मंडित समर के। ठोकर के लागे जासु मंच के अचल कंपि
ससकै कमठ सेस बल के उभर के॥ भने कबि 'मान' महा-बिक्रम-निधान, मल्ल
बिद्या के विधान प्रानप्यारे रघुवर के। पालत प्रजानि भंजि प्ररि की भुजानि ते वे बंदो जुग जानु जानकी के सोक-हर के॥४५॥
जंघा मसक लौ जिनसों मसोस्यो खग्ग रोम खंडि
खलन को खोम जोम जीते रन रंग की।
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