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नागरीप्रचारिणी पत्रिका बिक्रम हि सो जु राखें मुष्ट को सुपुष्ट तेज,
मुष्ट करै बज्रनि रघुष्ट मघवान को। लंक रन रुष्ट हनै बाज गज रुष्ट बंदों दुष्ट-दल-भंजन अंगुष्ठ हनुमान को ॥३४॥
उँगली खडग त्रिसूल खेट खट्वा अंग भिंडिपाल,
लिए गिरि लंक गर्भ आसुरी तुवन की। मुदगर-बलित कमंडल कलित ज्ञान
मुद्र सो ललित फास नासन दुवन की । भने कबि 'मान' फल मानि के बिमान भानु,
गहि जिन गंजि प्रभा कात ही उवन की। अंग करि मंडित अभंगुली कुलिश पाठ, बंदी साठ अंगुली ते अंजनी-सुवन की ॥३॥
चपेटा तरनि के त्रासनि जे ग्रासनि अकंपन की,
प्रासनि विनासनि जो काम निरधूत की। त्रिसिरा-तरासनि निकुंभ की निरासनि,
हिरासनि हुड़कि धूमलोचन अकूत की । भने कबि 'मान' जो खखेटिनि खलनि जो,
सुसेटनि ससेट भगी सेना पुरुहूत की । लंकिनी लपेटनि दपेटनि दलनि बंदी, अत की चपेटनि चपेट पौनपूत की ॥३६॥
अंजलि संत-हित-वादिनी है प्रभु की प्रसादिनी है,
अरि-उतसादिनी है प्यारी पुरुहूत की । अंजनी-प्रमादिनी है सिया-अहलादिनी है,
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