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________________ ४८२ नागरीप्रचारिणी पत्रिका बिक्रम हि सो जु राखें मुष्ट को सुपुष्ट तेज, मुष्ट करै बज्रनि रघुष्ट मघवान को। लंक रन रुष्ट हनै बाज गज रुष्ट बंदों दुष्ट-दल-भंजन अंगुष्ठ हनुमान को ॥३४॥ उँगली खडग त्रिसूल खेट खट्वा अंग भिंडिपाल, लिए गिरि लंक गर्भ आसुरी तुवन की। मुदगर-बलित कमंडल कलित ज्ञान मुद्र सो ललित फास नासन दुवन की । भने कबि 'मान' फल मानि के बिमान भानु, गहि जिन गंजि प्रभा कात ही उवन की। अंग करि मंडित अभंगुली कुलिश पाठ, बंदी साठ अंगुली ते अंजनी-सुवन की ॥३॥ चपेटा तरनि के त्रासनि जे ग्रासनि अकंपन की, प्रासनि विनासनि जो काम निरधूत की। त्रिसिरा-तरासनि निकुंभ की निरासनि, हिरासनि हुड़कि धूमलोचन अकूत की । भने कबि 'मान' जो खखेटिनि खलनि जो, सुसेटनि ससेट भगी सेना पुरुहूत की । लंकिनी लपेटनि दपेटनि दलनि बंदी, अत की चपेटनि चपेट पौनपूत की ॥३६॥ अंजलि संत-हित-वादिनी है प्रभु की प्रसादिनी है, अरि-उतसादिनी है प्यारी पुरुहूत की । अंजनी-प्रमादिनी है सिया-अहलादिनी है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034973
Book TitleNagri Pracharini Patrika Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Hirashankar Oza
PublisherNagri Pracharini Sabha
Publication Year1933
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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