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खुमान और उनका हनुमत शिखनख ४८१ राम-रन-रंजा गज-कर्न-गल-गंजा रनअक्ष मुख भंजा धन्य पंजा महाबल के ॥३१॥
मुष्टिका फोरथो कुंभ-मस्तक लथोरयो कंधकाली जिहि,
काली को झकोरयो मद मोरयो मघवंत को। घोरानन घोरयो ब्योम-बीथिनि बिथोरयो
निरधूतकाय झोरयो कष्ट तोरयो सुर-संत को ।। माली को मरोरयो जम्बुमाली झकझोरयो
कबि'मान' जस जोरयो छोरयोसंकट अनंत को। अरिन पै रुष्ट बत्र निरधुष्ट दुष्ट दारुन सुपुष्ट बंदों मुष्ट हनुमंत को ॥३२॥
चुटकी खुटकी बुटी लौं नाग घुटकी उसक गटी
गुटकी गटकि गहि जाने तेज तुटकी । फुटकी लौ फेंकि महा कुटकी बिटप जाने,
समर में सुटकी सपूती सिया मुटकी ॥ रुटकी है पुटकी प्रले की पुटकी सी रोग
टुटकी हरनि 'मान' काल के लकुट की। चुटकीन लंक घूटि घुटकी मसोसी चंडचुटकी सु बंद हनुमंत पानि-पुटकी ॥३३॥
अँगूठा पावै जोम कुष्ट जपै मंच सत घुष्ट नष्ट,
ताको जुर कष्ट सुष्ट दाता बरदान को। 'मान' कबि तुष्ट देत दासन को, दुष्ट मीडि
मारै खल खुष्ट काल दुष्टन के प्रान को ।।
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