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नागरीप्रचारिणी पत्रिका जापै दीनबंधु सहित चढ़ाए ते वे ____बंद जुग कंध दसकंधरि-प्रदूत के ॥२८॥
भुजा गिरि गढ़ ढाहन सनाहन हरन वार
क्रुद्ध है करन वार खल-दल भंग के। 'मान' कबि ओज उद्भूत मजबूत महा,
बिक्रम अकूत धरै तूत सफजंग के । ठोकत ही जिन्हें रन-ठौर तजि भाजै अरि
ठहरै न ठीक ठाक उमड़ि उमंग के। भारी बलवंत कालदंड ते प्रचंड बंदों,
उदित उदंड भुजदंड बजरंग के ॥२॥ पूजी जे उमाहै भारी बल की उमाहै लोक
छाही महिमा है प्रभुकारज प्रभूत की। अरि-दल दाहै काल-दंड की उजाहै सुर
मेटती रुजाहै कै सनाहै पुरहूत की। 'मान' कबि गाहै सदा जासु जस गाहै
ओज वाहै अवगाहै जे निगाहै रनतूत की। खलन को ढाहै करै दीनन पै छाहै जोमजन को निबाहै धन्य बाँहै पौनपूत की ॥३०॥
पंजा मीडि महि-मंडल कमंडल यौ खंडे कोपि
फोरै ब्रह्मांड को समान अंड फूल के। बज्र हूँ ते जिनके प्रहार हैं प्रचंड घोर
कालदंड दंड ते उमंड झला झलके । भनै कबि 'मान' सरनागत सहाइ करें,
अरिन ढहाइ जे बढ़ाई बल खल के।
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