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खुमान और उनका हनुमत शिखनख ठोढ़ी
प्रगट प्रभान सो सुमेर की सिखा कैध प्रखर सिंदूराचल - सानु बड़े सान की । अरुन उमंड घनी घन की घटा है प्रलै
पावक छटा है कै हरनि अरि-प्रान की ॥ समीरन ऊमी जैत्र पत्रो जाहि भूमी छूमी समर घमंड चंद्र चूमी पवमान की । गोड़ी भानु मंडली बगोड़ी सुर-सैन लरि
ड़ी बज्र ओट धन्य ठोढ़ी हनुमान की ॥ २६ ॥ कंठ
जासों बाहु मेलि मिले सानुज सकेलि राम,
अक्ष कर झेलि करो खेल मल्लपन को । दाब्यो भुजबीस को दब्यो ना बन्यो खोरि है न
जाको ओर-छोर बन्यो जोर खल गन को ॥ भनै कबि 'मान' मनि-माला छबिवान हरि
जस को निधान धरै ध्यान घनाघन को । मल्यो है सुकंठ जो सराह्यो सितिकंठ रनबंदी यह कंठ दसकंठ-रिपु-जन को ॥ २७ ॥ कंध
लाए द्रोन अचल उपाटि धरि जापै व्योम ब्यापै बल कापै कहि जात मजबूत के । हेम-उपवीत पीत बसन परीत जे घरैया
इंद्रजीत जुद्ध लच्छन सपूत के ॥ भनै कबि 'मान' महा बिक्रम बिराजमान सराहे पुरहूत के ।
भारी जान समर
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