Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 91
________________ खुमान और उनका हनुमत शिखनख छत्रपन छाजै बल बिक्रम बिराजे साजै संतन समाजै सदा मौजन उमंग की ॥ 'मान' कबि गाजै जन-भीति भंजि भाजै तेजभ्राजै ताजै तरजे तराजै रबि रंग की । लाजै लै - घन की गराजै गल गाजे बाजे दुंदुभी तेगूज व गराजे बजरंग की ॥ २० ॥ लागी लंक लूकेँ जगी ज्वाल की भभूकैं लखि, ऊकै ता कतूकै तिय कूकैं जातुधान की । दिष्ट राज जू के कर दू कै पद छूकै बूकै अरिन की मूँ... धूकै सम धूकै जन प्रन को न चूके मघवान की ॥ 'मान' कबि जस रूकै भीम रूकै दिपै भान की । खलन की भूकै भूत-भय भजि ढूकै हिय— हूकै दसकंठहू के हूकै हनुमान की ॥ २१ ॥ ओठ एक नभ ओर एक भूतल के छोर ब्रह्मांड कोर तोर फाल ग्रास अनुमंता के । देखि दल भिन्न होत अरि-उर भिन्न— दसकंठ-मन खिन्न दुख छिन्न सिया कंता के ॥ भनै कबि 'मान' मघवान रन-चाव जिन दापि दले दरपि दिवाकर के जंता के । वीर रुद्ररस के बनाए बिधि गौढ़ खल ढोढ करते वे ओठ बंदों अहंता के ॥ २२ ॥ दंत तंव स्रुति अंत बिरतंत बरनंत बलसंवत अनंत हिवंत भगवंत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat के । ४७७ www.umaragyanbhandar.com

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