Book Title: Nagri Pracharini Patrika Part 13
Author(s): Gaurishankar Hirashankar Oza
Publisher: Nagri Pracharini Sabha

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Page 88
________________ ४७४ नागरीप्रचारिणो पत्रिका दीन पै द्रवन बिनैवान के स्रवन बंदी उग्र ते वे स्रवन समीरन के नंद के ॥११॥ तप भरे तेह भरे राम-पद-नेह भरे, संतत सनेह भरे प्रेम की प्रभा भरे । सील भरे साहस सपूती मजबूती भरे, तर्ज भरे बाल-ब्रह्मचारी की चपा भरे ॥ भने कबि 'मान' दान सान भरे मान भरे, घमासान भरे दुष्ट-दरन-द्रपा भरे । सोचन के मोचन बिरोचन कुत्रासन ते, __ बंद पिंगलोचन के लोचन कृपा भरे ॥१२॥ सुष्टि कोटि कामधेनु लौ धुरीन कामना के देत, चिंता हरि लेत कोटि चिंतामनि कूत की। बिथा चकचूरै कोटि जीवन-सुधा लौं सिंधु पूरै कोटि कलपलता लौं पुरहूत की। भनै कवि 'मान' कोटि सुधा लौं सुधार कोटि सिंधुजा लौ सुखदानि दान पंचभूत की। गंजन बिपत्ति मन-रंजन सुभक्ति भय___ भंजनि है नजर प्रभंजन के पूत की ॥१॥ कुद्रष्टि बाड़व की बरनि जमदंड की परनि, चिल्ली झार की झरनिरिस भरनि गिरीस की। गाज की गिरनि प्रलै-भानु की किरनि चक्री चक्र की फिरनि फूतकार कै फनीस की । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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