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प्रेमरंग तथा आभासरामायण निशाचर का पूत लड़ा पिल कों। पकड़ ल्याय पाकशासन कों॥ छोड़ाया देव दिया पन कों । बढ़ा इंद्रजित पिता पुस्ती ॥१६॥ कहें रघुनाथ अगस्त मुनि सों। कोई जबरदस्त न रावन सों॥ छोड़ाया बाँध अर्जुन स । पुलस्त कर दोस्त हुई सुस्ती ॥१७॥ सुना जब्बर बड़ा बाली । धरन रावन चला खाली ॥ बगल धर बाँध पचाय डाली । सिरों पर सिर जबरदस्ती ॥१८॥ हनुमान बल को सराहे राम । कहा मुनिवर नंदिन काम ॥ पितासुग्रीव सेसुमाता नाम । कुमार मुनि काकथन कहते ॥१॥ दसानन मौत प्रभू पहेचान । सिया बुध रोहिनी सी मान ।। नारद सितदीप बली जन जान । खेलाया गेंद जीया बहते ॥२०॥ बली रावन का सुत सरजाम । प्रभु मारन हुए नर राम ।। कथा कहे मुनि गए निज धाम । जनक कैकेय बिदा गहते ॥२१॥ यावत् बाँदर बिदा लेते । सरन हनुमान रहन देते ॥ बिभीखन और प्रतर्दन ते । त्रिशत् राजा बिरह दहते ॥२२॥ लिया पुष्पक बगीचे जाय । सिया बन कों लिया बर पाय ॥ निचन केबचन लछमन संगजाय।छोड़ावाल्मीक बनु रहते ॥२३॥ सुमंत्र मंत्र कहा होनहार । मिले प्रभु सों रोए चौधार ॥ लछमन से सुनशमन उर धार । सभा दोखन नगर लहते ॥२४॥ निमी नृग सी तमननकरी । गिरे गुरु देह देह धरी ॥ ययाती की क्षमा सुथरी । सभा गुन सुन करन कहते ॥२५॥ सुना द्विज का किया इनसाफ। गिद्ध को जान कीनी माफ ॥ मुनि मधुबन के माँगे साफ । लवन मारन अरिहन चहते ॥२६॥ शत्रुघ्न को दिया सर राम । प्राए वाल्मीक मुनि के धाम ॥ सुना सौदास सिया सुत नाम । लड़े मधुबन लवन सहते ॥२७॥
१६-पाकशासन = इंद्र ।
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